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लौकी की खेती

जायद में लौकी की खेती करने वाले किसानों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी

जायद में लौकी की खेती करने वाले किसानों के लिए महत्वपूर्ण जानकारी

भारत में सर्दियों का मौसम अब अपने अंतिम पड़ाव पर है और गर्मियां बिल्कुल शुरू होने की कगार पर हैं। इस मध्य बहुत सारे किसान फिलहाल गर्मियों में बोई जाने वाली लौकी की फसल लगाने की तैयारी कर रहे हैं। 

दरअसल, किसी भी फसल की खेती को लेकर कृषकों के मन में प्रश्न अवश्य होते हैं। कुछ ऐसे ही सवाल लौकी की खेती करने वाले किसानों के मन में आते हैं। जैसे कि किस प्रकार से लौकी की खेती की जाए कि उपज बढ़े और उन्हें हानि भी न वहन करनी पड़े।

गर्मी की फसल की बुवाई मार्च के पहले हफ्ते से अप्रैल महीने के पहले सप्ताह में की जाती है। गर्मी के मौसम में अगेती फसल लगाने के लिए कृषक इसके पौधे पॉली हाउस से खरीद सकते हैं और इन्हें सीधे अपने खेतों में लगा सकते हैं।

इसके लिए प्लास्टिक बैग अथवा फिर प्लग ट्रे में कोकोपीट, परलाइट, वर्मीकुलाइट, 3:1:1 अनुपात में रखकर इसकी बुवाई करें।

लौकी की खेती करते समय ध्यान रखने योग्य बातें 

लौकी की खेती से शानदार पैदावार पाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा विकसित किस्में पूसा नवीन, पूसा संतुष्टी, पूसा सन्देश लगा सकते हैं। इस फसल की बुवाई या रोपाई नाली बनाकर की जाती है। जहां तक संभव हो सके नाली की दिशा उत्तर से दक्षिण दिशा में बनाए और पौध व बीज की रोपाई नाली के पूर्व में करें।

लौकी की खेती के लिए ग्रीष्म और आर्द्र जलवायु सबसे अच्छी होती है। लौकी के पौधे अधिक ठंड को सहन नहीं कर सकते हैं। इसलिए इनकी खेती विशेष रूप से मध्य भारत और आसपास के इलाकों में होती है। इसकी खेती के लिए 32 से 38 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान सबसे अच्छा होता है। इसका अर्थ है गर्म राज्यों में इसकी खेती काफी अच्छे से की जाती है।

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इसके अतिरिक्त खेती के लिए सही भूमि का चुनाव, बुवाई का समय, बीज उपचार, उर्वरक प्रबंधन, सिंचाई प्रबंधन, खरपतवार प्रबंधन, कीट प्रबंधन जैसी बातों को भी ध्यान में रखना आवश्यक है। अगर किसान इन सब बातों को ध्यान में रखकर खेती करें तो उपज भी शानदार होगी और मुनाफा भी दोगुना होगा।

बतादें, कि लौकी की बिजाई हेतु नाली की दूरी कितनी रखनी चाहिए। गर्मियों में नाली से नाली का फासला 3 मीटर। बरसात में नाली से नाली का फासला 4 मीटर रखें। पौध से पौध का फासला 90 सेंटीमीटर रखें। किसान भाई इस प्रकार कीटों से बचाव करें। 

लाल कीड़ों का संक्रमण सबसे ज्यादा कब होता है 

ध्यान रहे खेत में पौधे के 2 से 3 पत्ते आने के समय से ही लाल कीड़े यानी रेड पंम्पकीन बीटल कीडों का संक्रमण काफी ज्यादा होता है। इससे बचने के लिए किसान भाई डाईक्लोरोफांस की मात्रा 200 एमएल को 200 मिली लीटर पानी में घोल बनाकर 1 एकड़ की दर सें छिड़काव करें। 

इस कीट का खात्मा करने के लिए सूर्योदय से पहले ही छिड़काव करें। सूर्योदय के उपरांत ये कीट भूमि के अंदर छिप जाते हैं। जहां तक हो सके वहां तक बरसात में पौधों को मचान बनाकर उगाएं। इससे बरसात में पौधों के गलने की समस्या काफी कम होगी और पैदावार भी बेहतरीन मिलेगी।

लौकी की खेती कैसे की जाती है जानिए सम्पूर्ण जानकारी के बारे में

लौकी की खेती कैसे की जाती है जानिए सम्पूर्ण जानकारी के बारे में

लौकी भारत में सब्जी के रूप में बड़े पैमाने पर उगाई जाती है और इसके फल साल भर उपलब्ध रहते हैं। लौकी नाम फल के बोतल जैसे आकार और अतीत में कंटेनर के रूप में इसके उपयोग के कारण पड़ा। नरम अवस्था में फलों का उपयोग पकी हुई सब्जी के रूप में और मिठाइयाँ बनाने के लिए किया जाता है। परिपक्व फलों के कठोर छिलकों का उपयोग पानी के जग, घरेलू बर्तन, मछली पकड़ने के लिए जाल के रूप में किया जाता है। सब्जी के रूप में यह आसानी से पचने योग्य है। इसकी तासीर ठंडी होती है और कार्डियोटोनिक गुण के कारण मूत्रवर्धक होता है।  लोकि से कई रोग जैसे की कब्ज, रतौंधी और खांसी को नियंत्रित किया जा सकता है। पीलिया के इलाज के लिए पत्ते का काढ़ा बनाकर सेवन किया जाता है। इसके बीजों का उपयोग जलोदर रोग में किया जाता है।  

लौकी की फसल के लिए उपयुक्त जलवायु

लौकी एक सामान्य गर्म मौसम की सब्जी है। खरबूजा और तरबूज की तुलना में लोकि की फसल ठंडी जलवायु को बेहतर सहन करती है। लोकि की फसल पाले को बर्दाश्त नहीं कर सकती। अच्छी जल निकास वाली उपजाऊ गाद दोमट होती है।  यह भी पढ़ें:
लौकी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी इसकी खेती के लिए गर्म और नम जलवायु अनुकूल होती है। रात का तापमान 18- 22°C और  दिन का तापमान 30-35  इसकी उचित वृद्धि और उच्च फल के लिए इष्टतम होता है। 

खेत की तैयारी     

फसल की बुवाई से पहले खेत को तैयार किया जाता है। खेत को प्लॉव से एक बार गहरी जुताई करके तैयार करें उसके बाद इसके बाद 2 बार हैरो की मदद से खेत को अच्छी तरह से जोते। आखरी जुताई के समय खेत में 4 टन प्रति एकड़ की दर से गोबर की खाद या कम्पोस्ट को अच्छी तरह मिट्टी में मिला दें।             

बीज की बुवाई

यदि आप चाहे तो सीधे बीजो को खेत में लगाकर भी इसकी खेती कर सकते है | इसके लिए आपको तैयार की गयी नालियों में बीजो को लगाना होता है| बीजो की रोपाई से पहले तैयार की गयी नालियों में पानी को लगा देना चाहिए उसके बाद उसमे बीज रोपाई करना चाहिए।  यह भी पढ़ें: जानिए लौकी की उन्नत खेती कैसे करें लौकी की जल्दी और अधिक पैदावार के लिए इसके पौधों को नर्सरी में तैयार कर ले फिर सीधे खेत में लगा दे। पौधों को बुवाई के लगभग 20 से 25 दिन पहले तैयार कर लेना चाहिए। इसके अतिरिक्त बीजो को रोग मुक्त करने के लिए बीज रोपाई से पहले उन्हें गोमूत्र या बाविस्टीन से उपचारित कर लेना चाहिए। इससे बीजो में लगने वाले रोगो का खतरा कम हो जाता है, तथा पैदावार भी अधिक होती है। 

रोपाई का समय और तरीका

बारिश के मौसम में इसकी खेती करने के लिए बीजो की जून के महीने में रोपाई कर देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी रोपाई को मार्च या अप्रैल के महीने में करना चाहिए।  समतल भूमि में की गयी लौकी की खेती को किसी सहारे की जरूरत नहीं होती है | ऐसी स्थिति में इसकी बेल जमीन में फैलती है, किन्तु जमीन से ऊपर इसकी खेती करने में इसे सहारे की जरूरत होती है। इसके लिए खेत में 10 फ़ीट की दूरी पर बासो को गाड़कर जल बनाकर तैयार कर लिया जाता है, जिसमे पौधों को चढ़ाया जाता है। इस विधि को अधिकतर बारिश के मौसम में अपनाया जाता है।  

फसल में खरपतवार नियंत्रण  

खरपतवार नियंत्रण करने के लिए फसल में समय समय पर निराई गुड़ाई करते रहे ताकि फसल को खरपतवार मुक्त रखा जा सकें।  यह भी पढ़ें: सही लागत-उत्पादन अनुपात को समझ सब्ज़ी उगाकर कैसे कमाएँ अच्छा मुनाफ़ा, जानें बचत करने की पूरी प्रक्रिया रासायनिक तरीके से खरपतवार पर नियंत्रण के लिए ब्यूटाक्लोर का छिड़काव जमीन में बीज रोपाई से पहले तथा बीज रोपाई के तुरंत बाद करनी चाहिए| खरपतवार के नियंत्रण से पौधे अच्छे से वृद्धि करते है, तथा पैदावार भी अच्छी होती है | 

फसल में उर्वरक और पोषक तत्व प्रबंधन

फसल से उचित उपज प्राप्त करने के लिए 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 15 - 20 किलोग्राम फॉस्फोरस और 20 किलोग्राम पोटाश प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें।    

लौकी के प्रमुख रोग और उनका नियंत्रण

  • लौकी (घीया) एक प्रमुख फलीय सब्जी है जो भारतीय खाद्य पदार्थों में आमतौर पर प्रयोग होती है। यह कई प्रमुख रोगों के प्रभावित हो सकती है, जिनमें से कुछ मुख्य हैं:
  • लौकी मोजैक्यूलर वायरस रोग (Luffa Mosaic Virus Disease):
  • इस रोग में पत्तियों पर पीले या हरे रंग के पट्टे दिखाई देते हैं। यह रोग पौधों की वृद्धि और उत्पादन पर असर डालता है।
  • नियंत्रण के लिए, स्वस्थ बीजों का उपयोग करें और बीमार पौधों को नष्ट करें।
  • लौकी मॉसेक वायरस रोग (Luffa Mosaic Virus Disease):
  • इस रोग में पत्तियों पर सफेद या हरे रंग के दाग दिखाई देते हैं। यह पौधों की वृद्धि पर नकारात्मक प्रभाव डालता है।
  • नियंत्रण के लिए, स्वस्थ बीजों का उपयोग करें और संक्रमित पौधों को नष्ट करें।
  • दाग रोग (Powdery Mildew): यह रोग पात्र प्रभावित करके पौधों पर धूल की तरह सफेद दाग उत्पन्न करता है। इसके नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपाय अपनाएं:
  • दाग रोग से प्रभावित पौधों को हटाएं और उन्हें जला दें।
  • पौधों की पर्यावरण संगठना को सुधारें, उचित वेंटिलेशन प्रदान करें और पानी की आपूर्ति को नियमित रखें।
  • दाग रोग के लिए केमिकल फंगिसाइड का उपयोग करें, जैसे कि सल्फर युक्त फंगिसाइड।

लौकी के फल की तुड़ाई और पैदावार

फसल की बुवाई और रोपाई के लगभग 50 दिन बाद लौकी उड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। जब लौकी सही आकर की दिखने लगे तब उसकी तुड़ाई कर ले। तुड़ाई करते समय किसी धारदार चाकू या दराती का इस्तेमाल करें। लौकी को तोड़ते समय फल के ऊपर थोड़ा सा डंठल छोड़ दें जिससे फल कुछ समय तक फल ताजा रहें। लौकी की तुड़ाई के तुरंत बाद पैक कर बाजार में बेचने के लिए भेज देना चाहिए | फलो की तुड़ाई शाम या सुबह दोनों ही समय की जा सकती है। एक एकड़ भूमि से लगभग 200 क्विंटल का उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 
नरेंद्र शिवानी किस्म की लौकी की लंबाई जानकर आप दंग रह जाऐंगे

नरेंद्र शिवानी किस्म की लौकी की लंबाई जानकर आप दंग रह जाऐंगे

किसान भाई नरेंद्र शिवानी प्रजाति की लौकी की खेती कर बेहतरीन कमाई कर सकते हैं। लौकी सब्जी के अतिरिक्त मिठाई, रायता, आचार, कोफ्ता, खीर इत्यादि तैयार करने में उपयोग की जाती हैं। 

इससे विभिन्न प्रकार की औषधियां भी निर्मित होती हैं। लौकी खाने में फायदेमंद होने की वजह से चिकित्सक भी रोगियों को इसका सेवन करने की सलाह देते हैं। 

इन दिनों उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में स्थित मंगलायतन विश्वविद्यालय के कृषि संकाय की ओर से उगाई गई लौकी आकर्षण का केंद्र बनी है। कारण यह है, कि इसका रंग और स्वाद तो आम लौकी जैसा ही है। 

परंतु, देखने में यह बिल्कुल अलग है। नरेंद्र शिवानी प्रजाति की लौकी की लंबाई लगभग पांच फीट है। कृषि संकाय के प्राध्यापकों और विद्यार्थियों ने अभी लौकी की इस फसल को बीज प्राप्त करने के लिए तैयार किया है। 

इस किस्म की फसल की पैदावार से किसान बेहतरीन मुनाफा प्राप्त कर सकते हैं। 

लौकी किसानों को जागरुक किया जा रहा है

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पीके दशोरा का कहना है, कि विश्वविद्यालय में यह लौकी किसानों को जागरूक करने और शुद्ध बीज तैयार करने के लिए उगाई जा रही है। 

उनका कहना है, कि लौकी एक अनोखी सब्जी है जो औषधि, वाद्ययंत्र, सजावट इत्यादि के रूप में भी इस्तेमाल की जाती है। उन्होंने बताया है, कि विश्वविद्यालय किसानों को जागरूक करने के साथ-साथ उन्हें उन्नत किस्मों से काफी अच्छा लाभ कमाने के लिए प्रशिक्षित करेगा।

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विशेषज्ञों का इस पर क्या कहना है

बतादें, कि कृषि विभाग के अध्यक्ष प्रो. प्रमोद कुमार का कहना है, कि इस लौकी की फसल की बुवाई जुलाई माह में की गई थी। इस किस्म का औसत उत्पादन 700-800 कुंतल प्रति हेक्टेयर है। 

एक हजार कुंतल प्रति हेक्टेयर तक इसकी पैदावार अर्जित की जा सकती है। इस किस्म का स्वाद एवं पोषक तत्व बाकी प्रजातियों के समान ही होते हैं। 

इसमें प्रोटीन 0.2 प्रतिशत, वसा 0.1 प्रतिशत, फाइबर 0.8 प्रतिशत, शर्करा 2.5 प्रतिशत, ऊर्जा 12 किलो कैलोरी, नमी 96.1 प्रतिशत है। साथ ही, गोल फलों वाली किस्म नरेंद्र शिशिर भी पैदा की गई है। दिसंबर तक इसका बीज भी तैयार हो जाएगा। 

लौकी की खेती कैसे करें

आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि इस प्रजाति की लौकी की खेती करने के लिए अच्छे गुणवत्ता वाले लौकी के बीजों का चुनाव करें। लौकी के खेत का चयन करते समय अच्छे स्थान का चयन करें। 

इसके बीजों को बोने के लिए मार्च-अप्रैल के बीच अच्छे मौसम का चयन करें। लौकी की पौधों के बीच की दूरी 1.5-2.5 मीटर तक होनी चाहिए। पौधों की नियमित रूप से सिंचाई करें।

जानें घर पर लौकी उगाने का आसान तरीका

जानें घर पर लौकी उगाने का आसान तरीका

आज हम आपको इस लेख में जानकारी देंगे कि कैसे आप अपने घर में बेहतरीन और ताजा लौकी उगा सकते हैं। इसके लिए आपको यहां बताई गईं बातों का विशेष ध्यान रखा पड़ेगा। लौकी एक ऐसी हरी सब्जी है, जो खाने में बेहद स्वादिष्ट होती है। साथ कई गुणों से भी भरपूर होती है। जी हां हम लौकी की बात कर रहे हैं। लौकी की सब्जी औषधीय गुणों से भरपूर होती है और सेहत के लिए भी बेहद बढ़िया होती है। आइए जानते हैं आप इसे कैसे आसानी से अपने घर पर ही उगा सकते हैं। किसी भी सब्जी या फल को लगाने के लिए अच्छे बीज का चुनाव करना बहुत महत्वपूर्ण है। इसके लिए आप बीज किसी अन्य जगह से खरीदने की जगह लौकी का सही बीज बीज भंडार से खरीद सकते हैं। बीज भंडार में अच्छी किस्म के बीज आसानी से और कम मूल्य पर उपलब्ध हैं। बीज लगाने से पहले कुछ बातों पर ध्यान देना चाहिए।

बीज का उपचार कैसे करें

अगर बीज सीड की तरह है, तो एक दिन पहले उसे पानी में भिगोकर रख दें, जिस मिट्टी में बीज लगाना है, उसे अच्छे से फोड़कर धूप में रखें। कुछ देर धूप में रखने के बाद, एक मग से खाद मिलाकर अच्छे से मिलाएं। अब इसे गमला में डालें। अगले दिन, बीज को पानी से निकालकर मिट्टी के अंदर 1-2 इंच दबाकर ऊपर से पानी और मिट्टी डाल दें।

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लौकी उत्पादन के दौरान प्रमुख आवश्यक बातें

लौकी उत्पादन के लिए एक इंच की गहराई में लौकी के बीजों को ग्रो बैग या पॉट की मिट्टी में डालें। मिट्टी में बीज बोने के बाद स्प्रे पंप या वॉटर कैन से पानी डालें। बीजों के जर्मिनेट होने तक मिट्टी में पानी डालकर नमी को हमेशा बनाए रखें। लेकिन अधिक पानी नहीं डालें। लौकी के पौधे 18 से 35 डिग्री सेल्सियस के तापमान पर अच्छी तरह से ग्रो करते हैं। आपकी जानकारी के लिए बतादें, कि 15 डिग्री से कम और 35 डिग्री से अधिक तापमान पर बीजों की अंकुरण दर कम होती है। इसके सीड्स जर्मिनेट होने में 6 से 14 दिन लग सकते हैं। लौकी के बीज को मिट्टी में डालने के बाद बीज को जर्मिनेट होने में 7 से 10 दिन लग सकते हैं। लौकी की उचित देखभाल करने पर 55 से 70 दिन में आपको ताजे फल मिलेंगे। रसोई में खाने के लिए ताजी लौकी को जरूरत के अनुसार तोड़ सकते हैं।
Bottle Gourd: लौकी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

Bottle Gourd: लौकी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

लौकी की फसल को किसान साल में तीन बार ऊगा सकते है। इसकी बुवाई का समय मध्य जनवरी , खरीफ मध्य जून से प्रथम जुलाई और रबी की फसल को सितम्बर अंत और अक्टूबर के पहले सप्ताह तक कर सकते है। किसान को हमेशा लौकी की अगेती बुवाई करनी चाहिए , इससे किसान भाइयों को अच्छी आमदनी मिलती है।

लौकी की खेती के लिए जलवायु

किसी भी फसल की खेती के लिए जलवायु की अहम भूमिका होती है, अगर आप उचित जलवायु के हिसाब से खेती नहीं करेंगे तो इसमें रोग और खरपतवार उगने की संभावना ज्यादा होती है। 

अगर हम लौकी की बात करें तो इसके लिए गर्म और आर्द्र जलवायु सबसे अच्छी मानी जाती है। ज्यादातर हिस्से में इसकी बुवाई गर्मी और बरसात के मौसम में की जाती है। 

इसकी खेती ठण्ड के मौसम में करने पर पाला लगने की संभावना ज्यादा होती है , जिसका असर पैदावार पर पड़ता है। इसकी खेती करने वाले किसानों की मानें तो जायद तथा खरीफ दोनों ऋतुओं में इसकी खेती करना अच्छा होता है।

लौकी की खेती के लिए 30-35 डिग्री सेन्टीग्रेड और पौधों की वढ़वार के लिए 32-38 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान अच्छा माना गया है। अगर लौकी को बरसात के मौसम में खरपतवार या रोग से बचाना है तो इसे जाल लगा कर 5 -7 फुट ऊपर कर सकते है। 

इससे लौकी का फल ख़राब नहीं होता है और इनका रंग भी चमकदार होता है। अगर आप भी लौकी की खेती करने जा रहें है तो जलवायु का विशेष ध्यान दें।

लौकी की खेती के लिए भूमि का चयन व भूमि की तैयारी

किसान इसकी खेती अलग – अलग तरह की जमीन पर कर सकते है ,लेकिन दोमट तथा जीवांश युक्त मिटटी सबसे उपयुक्त होती है। लौकी की खेती के लिए जमीन का पीएच मान 6.0-7.0 होना चाहिए। 

कहीं – कहीं पर अम्लीय भूमि में इसकी खेती करना अच्छा माना जाता है। पथरीली या फिर ऐसी जगह पर इसकी खेती नहीं करनी चाहिए जहां पानी लगता हो। 

इसके खेत की तैयारी की अगर हम बात करें तो सबसे पहले लौकी के खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करना चाहिए , जिसके बाद आप हैरों या कल्टीवेयर से भी इसकी जुताई करवा सकते है। 

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सभी जुताई के बाद इसमें पाटा जरूर लगवाएं इससे मिट्टी भुरभुरी और समतल होती है और खेत में कहीं भी पानी कम या ज्यादा नहीं लगता है।

जुताई इसलिए ज्यादा जरुरी है क्योंकि कभी – कभी पुराने अवशेष खरपतवार का रूप ले लेते है और फसल को नुकसान पहुचातें है। इसके खरपतवार को खत्म करने के लिए आप GEEKEN CHEMICALS के खरपतवारनाशी कैमिकल का प्रयोग कर सकते है। 

अगर कृषि एक्सपर्ट की मानें तो इसकी खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में कर सकते है। अगर संभव हो तो किसान गोबर के खाद का भी प्रयोग कर सकते है इससे खेत को ज्यादा रासायनिक खाद पर निर्भर नहीं होना पड़ेगा और पैदावार भी अच्छी होगी।

खरपतवार नियंत्रण एवं निराई – गुड़ाई 

बरसात के मौसम में यह देखा गया है कि लौकी की फसल में खरपतवार ज्यादा उग जाते है किसान खुर्पी से इसकी हल्की गुड़ाई करके खरपतवार को खत्म कर सकते है। 

लेकिन यह ध्यान रखना है की पौधे को किसी भी तरह का नुकसान न पहुँच पाए। लौकी की फसल में इसकी निराई – गुड़ाई किसान 20 -25 दिन के बाद कर सकते है। 

लौकी के अच्छी पैदावार के लिए और पौधे की वृद्धि के लिए 2 -3 बार इसकी निराई – गुड़ाई कर सकते है। किसान चाहें तो इसके बाद जड़ो के पास मिट्टी चढ़ा सकते है इससे जड़ के पास खरपतवार उगने की सम्भावना कम होती है।

अगर आप लौकी की फसल में उगने वाले खरपतवार को रासायनिक कीटनाशक के द्वारा खत्म करना चाहते है तो आप GEEKEN CHEMICALS के खरपतवारनाशी का प्रयोग कर सकते है। 

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हम बेहतर तरीके का खरपतवारनाशी कैमिकल प्रदान करते है। लौकी की फसल में उगने वाले खरपतवार को खत्म करने के लिए आप खरपतवारनाशी का प्रयोग कर सकते है। 

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लौकी के बेल को सहारा देना 

बरसात के मौसम में लौकी की अच्छी पैदावार पाने के लिए किसान भाइयों को लकड़ी या लोहे द्वारा निर्मित मचान पर चढ़ा कर खेती करना चाहिए। कृषि के जानकार किसान बताते है की ऐसा करने से लौकी के फलों का आकर सीधा ,रंग अच्छा और बढ़वार काफी तेजी से होती है। 

आप शुरुआत में लौकी की शाखा को काटकर निकाल सकते है, इससे ऊपर विकसित होने वाले शाखाओं में फल ज्यादा अच्छे से प्राप्त होते है। ऐसा करने से किसान बिना किसी नुकसान के लौकी की अच्छी फसल ऊगा सकते है।

लौकी के कीट एवं नियंत्रण 

कद्दू का लाल कीट (रेड पम्पकिन बिटिल) 

वैसे तो लौकी की फसल में कई तरह के कीट लगते है। लेकिन इनमें कद्दू का लाल कीट सबसे खतरनाक होता है। यह कीट चमकीली नारंगी रंग का होता है तथा सिर, वक्ष एवं उदर का निचला भाग काला होता है। 

इसकी सुंडी नीचे की तरफ पाई जाती है। कद्दू का लाल कीट सुंडी व वयस्क दोनों को नुकसान पहुँचाता है। यह ज्यादातर पौधों की जड़ों पर आक्रमण करता है। कृषि एक्सपर्ट की मानें तो यह कीट जनवरी से मार्च के महीने तक ज्यादा आक्रमण करते है।

आप इस कीट को खत्म करने के लिए GEEKEN CHEMICALS का प्रयोग कर सकते है। GEEKEN CHEMICALS ने कद्दू का लाल कीट (रेड पम्पकिन बिटिल) को ख़त्म करने के लिए एक अलग तरह का कीटनाशक बनाया है , जो इस तरह के कीटों को खत्म कर फसल की पैदावार को बढ़ाता है।

फल मक्खी 

फल मक्खी लौकी की फसल के लिए बहुत ही हानिकारक मानी जाती है। इस कीट की सुंडी सबसे ज्यादा फसल को नुकसान पहुँचाती है। फल मख्खी के सिर पर काले तथा सफ़ेद धब्बे पाए जाते है। 

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यह मख्खी जब भी फल पर अंडा देती है, तो फल सड़ने लगता है इसकी वजह से ही पूरी फसल सड़ कर ख़राब हो जाती है। इसके लिए आप GEEKEN CHEMICALS के कीटनाशक का प्रयोग कर सकते है। 

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जानिए लौकी की उन्नत खेती कैसे करें

जानिए लौकी की उन्नत खेती कैसे करें

लौकी की खेती करके किसान अपनी दैनिक जरूरतों के लिए रोजाना के हिसाब से आमदनी कर सकता है.लौकी आम से लेकर खास सभी के लिए लाभप्रद है. ताजगी से भरपूर लौकी कद्दूवर्गीय में खास सब्जी है. इससे बहुत तरह के व्यंजन जैसे रायता, कोफ्ता, हलवा व खीर, जूस वगैरह बनाने के लिए भी इस्तेमाल करते हैं. आजकल मोटापा भी एक रोग बनकर उभर रहा है. इसके नियंत्रण के लिए भी लौकी का जूस पीने की सलाह दी जाती है बशर्ते यह पूरी तरह से आर्गेनिक उत्पादन हो. अगर किसी कीटनाशक या इंजेक्शन का प्रयोग करके इसे उगाया गया हो तो ये काफी नुकसान दायक हो जाती है. यह कब्ज को कम करने, पेट को साफ करने, खांसी या बलगम दूर करने में बहुत फायदेमंद है. इस के मुलायम फलों में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट व खनिजलवण के अलावा प्रचुर मात्रा में विटामिन पाए जाते हैं. लौकी की खेती पहाड़ी इलाकों से ले कर दक्षिण भारत के राज्यों तक की जाती है. निर्यात के लिहाज से सब्जियों में लौकी खास है.

लौकी उगाने का सही समय:

लौकी एक
कद्दूवर्गीय सब्जी है. इसकी खेती गांव में किसान कई तरह से करते हैं इसकी खेती अपने घर के प्रयोग के लिए माता और बहनें अपने बिटोड़े और बुर्जी पर लगा कर भी करती हैं. बाकी किसान इसको खेत में भी करते हैं. लौकी की फसल वर्ष में तीन बार उगाई जाती है. जायद, खरीफ और रबी में लौकी की फसल उगाई जाती है। इसकी बुवाई मध्य जनवरी, खरीफ मध्य जून से प्रथम जुलाई तक और रबी सितम्बर अन्त और प्रथम अक्टूबर में लौकी की खेती की जाती है। जायद की अगेती बुवाई के लिए मध्य जनवरी के लगभग लौकी की नर्सरी की जाती है. अगेती बुबाई से किसान भाइयों को अच्छा भाव मिल जाता है. लौकी उगाने का सही समय

मौसम और जलवायु:

इसके बीज को अंकुरित होने के लिए 20 डिग्री के आसपास तापमान की आवश्कयता होती है. बाकी इसके फल लगाने के लिए कोई भी सामान्य मौसम सही रहता है. अगर हम बात करें किसान के बुर्जी या बिटोड़े के फल की तो इसकी बुबाई पहली बारिश के बाद की जाती है जो की जून और जुलाई के महीने में होता है और इस पर फल सर्दियों में लगना शुरू होता है. बाकी इसको सभी सीजन में उगाया जा सकता है. बारिश के मौसम में अगर इसको कीड़ों से बचाना हो तो इसको जाल लगा कर जमीन से 5 फुट के ऊपर कर देना चाहिए. इससे मिटटी की वजह से फल खराब नहीं होते तथा इनका रंग भी चमकदार होता है. ये भी पढ़ें: तोरई की खेती में भरपूर पैसा

मिटटी की गुणवत्ता और खेत की तैयारी:

लौकी की फसल के लिए खेत में पुराणी फसल के जो अवशेष हैं उनको गहरी जुताई करके नीचे दबा देना चाहिए. इससे वो खरपतवार भी नहीं बनेंगें और खाद का भी काम करेंगें.इसको किसी भी तरह की मिटटी में उगाया जा सकता है लेकिन ध्यान रहे इसके खेत में पानी जमा नहीं होना चाहिए इससे इसकी फसल और फल दोनों ही ख़राब होते हैं. खेत से पानी निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए. और अगर संभव हो तो इसके खेत में गोबर की सड़ी हुई खाद कम से कम 50 से 60 कुंतल की हिसाब से मिला दें. इससे खेत को ज्यादा रासायनिक खाद पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा.इसकी तैयारी करते समय पलेवा के बाद इसकी जुताई ऐसे समय करें जबकि न तो खेत ज्यादा गीला हो और नहीं ज्यादा सूखा जिससे जुताई करते समय इसकी मिटटी भुरभुरी होकर फेल जाये. इसके बात इसमें हल्का पाटा लगा देना चाहिए जिससे की खेत समतल हो जाये और पानी रुकने की संभावना न हो. ये भी पढ़ें: अच्छे मुनाफे को तैयार करें बेलों की पौध

लौकी की कुछ उन्नत किस्में:

सामान्यतः हमारे देश में जिस फसल या सब्जी की किस्म बनाई जाती है वो किसी न किसी कृषि संस्थान द्वारा बनाई जाती है तथा वो संस्थान उस किस्म को अपने संस्थान के नाम से जोड़ देते हैं. जैसे नीचे दिए गए किस्मों के नाम इसी को दर्शाते हैं. नीचे दी गई पैदावार के आंकड़े स्थान, मौसम और जमीन की पैदावार आदि पर निर्भर करते हैं.

कोयम्बटूर‐१:

तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय, कोयंबटूर द्वारा उत्पादित यह किस्म उसी के नाम से भी जानी जाती है .यह जून व दिसम्बर में बोने के लिए उपयुक्त किस्म है, इसकी उपज 280 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है जो लवणीय क्षारीय और सीमांत मृदाओं में उगाने के लिए उपयुक्त होती हैं

अर्का बहार:

यह किस्म खरीफ और जायद दोनों मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त है. बीज बोने के 120 दिन बाद फल की तुडाई की जा सकती है. इसकी उपज 400 से 450 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है.

पूसा समर प्रोलिफिक राउन्ड:

इसको पूसा कृषि संस्थान द्वारा विकसित किया गया है. यह अगेती किस्म है. इसकी बेलों का बढ़वार अधिक और फैलने वाली होती हैं. फल गोल मुलायम /कच्चा होने पर 15 से 18 सेमी. तक के घेरे वाले होतें हैं, जों हल्के हरें रंग के होतें है. बसंत और ग्रीष्म दोंनों ऋतुओं के लिए उपयुक्त हैं.

पंजाब गोल:

इस किस्म के पौधे घनी शाखाओं वाले होते है. और यह अधिक फल देने वाली किस्म है. फल गोल, कोमल, और चमकीलें होंते हैं. इसे बसंत कालीन मौसम में लगा सकतें हैं. इसकी उपज 175 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है.

पुसा समर प्रोलेफिक लाग:

यह किस्म गर्मी और वर्षा दोनों ही मौसम में उगाने के लिए उपयुक्त रहती हैं. इसकी बेल की बढ़वार अच्छी होती हैं, इसमें फल अधिक संख्या में लगतें हैं. इसकी फल 40 से 45 सेंमी. लम्बें तथा 15 से 22 सेमी. घेरे वालें होते हैं, जो हल्के हरें रंग के होतें हैं. उपज 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है.

नरेंद्र रश्मि:

यह फैजाबाद में विकसित प्रजाती हैं. प्रति पौधा से औसतन 10‐12 फल प्राप्त होते है. फल बोतलनुमा और सकरी होती हैं, डन्ठल की तरफ गूदा सफेद औैर करीब 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है.

पूसा संदेश:

इसके फलों का औसतन वजन 600 ग्राम होता है एवं दोनों ऋतुओं में बोई जाती हैं. 60‐65 दिनों में फल देना शुरू हो जाता हैं और 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है.

पूसा हाईब्रिड‐३:

फल हरे लंबे एवं सीधे होते है. फल आकर्षक हरे रंग एवं एक किलो वजन के होते है. दोंनों ऋतुओं में इसकी फसल ली जा सकती है. यह संकर किस्म 425 क्ंवटल प्रति हेक्टेयर की उपज देती है. फल 60‐65 दिनों में निकलनें लगतें है.

पूसा नवीन:

यह संकर किस्म है, फल सुडोल आकर्षक हरे रंग के होते है एवं औसतन उपज 400‐450 क्ंवटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है, यह उपयोगी व्यवसायिक किस्म है.

लौकी की फसल में लगने वाले कीड़े :

1 - लाल कीडा (रेड पम्पकिन बीटल):

उपाय: निंदाई गुडाई कर खेत को साफ रखना चाहिए. फसल कटाई के बाद खेतों की गहरी जुताई करना चाहिएए जिससे जमीन में छिपे हुए कीट तथा अण्डे ऊपर आकर सूर्य की गर्मी या चिडियों द्वारा नष्ट हो जायें.सुबह के समय जब ओस हो तब राख का छिड़काव करना चाहिए.

2 - फल मक्खी (फ्रूट फ्लाई):

क्षतिग्रस्त तथा नीचे गिरे हुए फलों को नष्ट कर देना चाहिए.सब्जियों के जो फल भूमी पर बढ़ रहें हो उन्हें समय समय पर पलटते रहना चाहिए.

लोकी में लगने वाले मुख्य रोग:

  • चुर्णी फफूंदी
  • उकठा (म्लानि)
लौकी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

लौकी की खेती से संबंधित विस्तृत जानकारी

लौकी की खेती मुख्यतः रबी, खरीफ व जायद तीनों सीजन में की जाने वाली बागवानी फसल है। लौकी को घिया और दूधी के नाम से भी जाना जाता है। लौकी की खेती भारत के तकरीबन समस्त राज्यों में की जाती है। लौकी की फसल समलत खेत, पेड़-पौधे, मचान निर्मित कर व घर की छतों पर बड़ी ही सहजता से की जा सकती है। आगे हम आपको लौकी की खेती के विषय में जानकारी देने वाले हैं।

लौकी की खेती

अगर हम हरी सब्जियों की बात करें तो लौकी का नाम सबसे पहले आता है। यह लोगों के शरीर के लिए काफी फायदेमंद होती है। लौकी के अंदर विटमिन बी, सी, आयरन, मैग्नीशियम, पोटैशियम एवं सोडियम आदि भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसका उपयोग मधुमेह, वजन कम करने, पाचन क्रिया, कोलेस्ट्रॉल को काबू में करने एवं नेचुरल ग्लो के लिए लौकी काफी ज्यादा लाभदायक होती है।

लौकी की खेती की विस्तृत जानकारी

  • लौकी की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
  • लौकी की खेती के लिए गर्म व आर्द्र जलवायु अच्छी मानी जाती है।
  • बीज अंकुरण के लिए लगभग 30 से 35 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान होना चाहिए।
  • पौधों के विकास के लिए 32 से 38 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान उपयुक्त होता है।


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लौकी की खेती के लिए भूमि कैसी होनी चाहिए

लौकी की खेती जीवांश युक्त जल धारण क्षमता वाली बलुई दोमट भूमि सबसे उपयुक्त मानी जाती है। लौकी की खेती कुछ अम्लीय भुमि के अंतर्गत भी की जा सकती है। लौकी की फसल के लिए 6.0 से 7.0 पीएच वाली मृदा सबसे अच्छी मानी जाती है। खेत से जल निकासी की समुचित व्यवस्था होनी चाहिए।

लौकी की खेती के लिए भूमि की तैयारी कैसे करें

  • लौकी की खेती के लिए भूमि की तैयारी करने के दौरान 8 से 10 टन गोबर की खाद एवं 2.5 किलोग्राम ट्रिकोडेर्मा प्रति एकड़ की दर से खेत में डालें।
  • खाद डालने के उपरांत खेत की बेहतर ढ़ंग से गहरी जुताई कर पलेवा कर दें।
  • पलेवा करने के 7 से 8 दिन उपरांत 1 बार गहरी जुताई करदें।
  • इसके उपरांत कल्टीवेटर से 2 बार आडी-तिरछी गहरी जुताई कर पाटा कर खेत को समतल कर लें।

लौकी की बिजाई हेतु समुचित समय

  • खरीफ (वर्षाकालीन) में बुआई का समय- 1 जून से 31 जुलाई के मध्य फसल अवधि- 45 से 120 दिन है
  • जायद (ग्रीष्मकालीन) में बुआई का समय- 10 जनवरी से 31 मार्च के मध्य फसल अवधि- 45 से 120 दिन है
  • रबी के लिए बुआई का समय- सितंम्बर-अक्टूबर

लौकी की प्रजातियां

काशी गंगा

  • काशी गंगा किस्म की लौकी की बढ़वार मध्यम होती है।
  • इसके तने में गाठें काफी हद तक पास-पास होती है।
  • इस किस्म की लौकी का वजन तकरीबन 800 से 900 ग्राम होता है।
  • इस प्रजाति को आप गर्मियों में 50 एवं बरसात में 55 दिनों के समयांतराल पर तोड़ सकते हैं।
  • इस किस्म से लगभग 44 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन लिया जा सकता है।

काशी बहार

  • इस किस्म की लौकी 30 से 32 सेंटीमीटर लंबी एवं 7-8 सेंटीमीटर व्यास होती है।
  • काशी बहार लौकी का वजन लगभग 780 से 850 ग्राम के मध्य होती है।
  • इस किस्म से 52 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन लिया जा सकता है।
  • इस किस्म को गर्मी एवं बरसात दोनों मौसम हेतु अनुकूल मानी जाती है।


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पूसा नवीन

  • पूसा नवीन प्रजाति बेलनाकार की होती है।
  • इस किस्म की लौकी का वजन तकरीबन 550 ग्राम तक होता है।
  • इस किस्म से 35 से 40 टन प्रति हेक्टेयर की पैदावार अर्जित की जा सकती है।

अर्का बहार

  • इस किस्म की लौकी मध्यम आकार एवं सीधी होती है।
  • इस किस्म की लौकी का वजन लगभग एक किलोग्राम तक होता है।

पूसा संदेश

  • इस किस्म का फल बिल्कुल गोलाकार होता है।
  • इस प्रजाति की लौकी का वजन लगभग 600 ग्राम तक होता है।
  • पूसा संदेश गर्मी में 60 से 65 दिन तो वहीं बरसात में 55 से 60 दिन में तैयार हो जाती है।
  • इस किस्म से 32 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन अर्जित किया जा सकता है।

पूसा कोमल

  • लौकी की यह किस्म 70 दिनों में पककर तैयार हो जाती है
  • पूसा कोमल किस्म लंबे आकार की होती है।
  • इस किस्म से 450 से 500 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन लिया जा सकता है।

नरेंद्र रश्मि

  • नरेंद्र रश्मि किस्म की लौकी का वजन लगभग 1 किलोग्राम होता है।
  • इसके फल छोटे एवं हल्के हरे रंग के होते हैं।
  • नरेंद्र रश्मि से 30 टन प्रति हेक्टेयर उत्पादन लिया जा सकता है।

लौकी की खेती हेतु बीज की मात्रा

लौकी की 1 एकड़ फसल उगाने के लिए 1 से 1.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।

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बीज उपचार

हाइब्रिड बीज कम्पनियों द्वारा उपचारित करके बाजार में भेजते हैं, तो इसको उपचारित करने की जरुरत नहीं पड़ती है। इसकी सीधे बिजाई की जाती है। यदि आपने लौकी का बीज घर पर बनाया है, तो उसको उपचारित करना जरूरी है। लौकी के बीज की बिजाई से पूर्व 2 ग्राम कार्बोनडाज़िम / किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें।

लौकी की बुआई का तरीका

  • लौकी की बिजाई के दौरान पौधे से पौधे की दूरी 60 सेमी।
  • पंक्ति से पंक्ति का फासला 150 से 180 सेमी रखें।
  • लौकी के बीज की 1 से 2 सेमी की गहराई पर बिजाई करें।

लौकी की खेती मे उर्वरक व खाद प्रबंधन

  • लौकी की फसल के लिए खेत तैयार करने के दौरान खेत में 8 से 10 टन गोबर की खाद और 2.5 किलोग्राम ट्रिकोडेर्मा प्रति एकड़ की दर से खेत में डालनी चाहिए।
  • लौकी की बिजाई के दौरान 50 किलोग्राम डी ऐ पी ( DAP ), 25 किलोग्राम यूरिया ( Urea ), 50 किलोग्राम पोटाश ( Potash ), 8 किलोग्राम जायम, 10 किलोग्राम कार्बोफुरान प्रति एकड़ के हिसाब से खेत में डालें।
  • लौकी की बिजाई के 20 से 25 दिनों उपरांत 10 ग्राम NPK 19 : 19:19 को 1 लीटर पानी मैं घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से फसल पर छिड़काव करें।
  • लौकी की बिजाई के 40 से 45 दिन बाद 50 किलोग्राम यूरिया को प्रति एकड़ के हिसाब से इस्तेमाल करें।
  • लौकी की बिजाई के 50 से 60 दिन पर 10 ग्राम NPK 0:52:34 एवं 2 मिली टाटा बहार को 1 लीटर पानी में मिलाकर प्रति एकड़ के मुताबिक इस्तेमाल करें।

लौकी की खेती मे सिंचाई

  • जायद की फसल हेतु 8-10 दिनों के समयांतराल पर सिंचाई करें।
  • खरीफ फसल में सिंचाई बारिश के अनुरूप की जाती है, वर्षा न होने की हालत में सिंचाई।
  • खेत की नमी के मुताबिक रबी की फसल में 10 से 15 दिन की समयावधि पर सिंचाई करें।

लौकी की फसल को प्रभावित करने वाले कीड़े

लाल कीडा : पौधो पर दो पत्तियां निकलने के उपरांत इस कीट का प्रकोप चालू हो जाता है। यह कीट पत्तियों व फूलों को खा कर फसल को बर्बाद कर देता है। यह कीट लाल रंग व इल्ली हल्के पीले रंग की होती है। इस कीट का सिर भूरे रंग का होता है।

लाल कीड़ा की रोकथाम कैसे करें

  • खेत की नराई/गुड़ाई करके खेत को साफ सुथरा रखें।
  • फसल कटाई के उपरांत खेत की गहरी जुताई करनी चाहिए, जिससे मृदा में छिपे कीट और उनके अण्डे ऊपर पहुँच कर सूर्य की गर्मी अथवा चिडियों द्वारा खत्म कर दिए जायेंगे।
  • कार्बोफ्यूरान 3 प्रतिशत दानेदार 7 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से पौधे से 3 से 4 सेमी. फासले से डालकर खेत में पानी लगाए।
  • कीटों की संख्या अधिक होने पर डायेक्लोरवास 76 ई.सी. 300 मि.ली. प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़काव करें।

फल मक्खी

प्रौढ़ फल मक्खी घरेलू मक्खी के आकार की लाल भूरे अथवा पीले भूरे रंग की होती है। इसके सिर पर काले अथवा सफेद धब्बे मौजूद होते हैं। इस कीट की मादा फलों को भेदकर भीतर अण्डे देती है। अण्डे से निकलने वाली इल्लियां फलों के गूदे को खा जाती हैं, जिसकी वजह से फल काफी सड़ने लग जाता है। बरसात में की जाने वाली फसल पर इस कीट का प्रकोप ज्यादा होता है।

फल मक्खी की रोकथाम किस प्रकार की जाती है

  • खराब और नीचे गिरे हुए फलों को अतिशीघ्र नष्ट कर देना चाहिए।
  • जो फल भूमि के संपर्क में आते हैं। उनको समयानुसार पलटते रहना चाहिए।
  • इसके प्रकोप से फसल का संरक्षण करने के लिए 50 मीली, मैलाथियान 50 ई.सी. एवं 500 ग्राम शीरा अथवा गुड को 50 लीटर पानी में मिश्रित कर छिड़काव करें। एक सप्ताह के उपरांत फिर से छिड़काव करें।

लौकी के मुख्य रोग

चुर्णी फफूंदी

यह रोग फफूंद के कारण फसल पर आता है। सफेद दाग एवं गोलाकार जाल सा पत्तियों एवं तने पर नजर आता है। जो कि बाद मे बढ़कर कत्थई रंग में तब्दील हो जाता है। इसके रोग के प्रकोप से पौधों की पत्तियां पीली पड़कर सूख जाती हैं। इसके प्रकोप से पौधों का विकास बाधित हो जाता है।

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चुर्णी फफूंद रोग की रोकथाम ऐसे करें

  • रोगी पौधे को उखाड़ कर मृदा में दबा दें अथवा उनको आग लगाकर जला दें।
  • फसल को इस प्रकोप से बचाने हेतु घुलनशील गंधक जैसे कैराथेन 2 प्रतिशत अथवा सल्फेक्स की 0.3 प्रतिशत रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखाई पड़ते ही कवकनाशी दवाइयों का इस्तेमाल 10‐15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए।

उकठा (म्लानि)

इस रोग से प्रभावित पौधों की पत्तियाँ मुरझाके नीचे की तरफ लटक जाती हैं एवं पत्तियाँ के किनारे बिल्कुल झुलस जातें हैं। इस रोग से बचाव के लिए फसल चक्र अपनाना अति आवश्यक होता है। बीज को वेनलेट अथवा बाविस्टिन 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करना चाहिए।

लौकी की तुड़ाई एवं पैदावार

लौकी की तुड़ाई उनकी किस्मों पर आधारित होती हैं। लौकी के फलों को पूरी तरह से विकसित होने पर कोमल अवस्था में ही तोड़ लेना चाहिए। बुवाई के 45 से 60 दिनों के पश्चात लौकी की तुड़ाई चालू हो जाती है। प्रति हेक्टेयर जून‐जुलाई एवं जनवरी‐मार्च वाली फसलों में क्रमश 200 से 250 क्विंटल एवं 100 से 150 क्विंटल उत्पादन लिया जा सकता है।